शुक्रवार, 22 जून 2007

भारत का उत्थान तुम कर सकते हो- भाग ७

और शिष्य बस राम नाम सत्य है आगे गया गत है। अब यहां तो गति हुई नहीं आगे होगी या नहीं यह आपने देखा नहीं। मैं कह रहा हूं गति कुछ होती नहीं है, गति हम उसकी करेंगे जो हमारे घर मे गड़बड़ करेंगे, जो हमारे घर में हिंसा लाएगा कमजोरी लाएगा। कारखाने में कोई गोली बननी ही नहीं चाहिए जो आपको लग जाए। जब बनेगी ही नहीं तो लगेगी कहां से वो।

मैं आपको ऐसा क्षमतावान बनाना चाहता हूं, जो पांच हजार वर्षों मे समाप्त हो गया उस ज्ञान को आपको देना चाहता हूं, उस कृत्या को आपको प्रदान कर देना चाहता हूं आप तेजस्विता युक्त बनें। सुर्य तो बहुत कम चमक वाला है आप उससे हजार गुना चमक वाले बनें, ऐसा ज्ञान मैं आपको प्रदान करना चाहता हूं।

मैंने आपको समझाया कि हम कमजोर और अशक्त क्यों है, मानसिक रुप से परेशान और रूग्ण क्यों है, और ऐसी कौन सी विद्या, कौन सी ताक़त है जिसके माध्यम से जो हमारे विकार हैं वे समाप्त हो सकें। हमारे मन कुल ३२ संचारी भाव होते हैं सोलह अनुकूल, सोलह प्रतिकूल। घृणा, कोध, प्रतिशोध, दुर्भावना, लोभ मोह, अंहकार ये सब संचारी भाव है। और कुछ अच्छे संचारी भाव भी होते है जैसे प्रेम, स्नेह, परोपकार।

जीवन का सार बलशाली होना है, जब तक आदमी निर्बल रहेगा तब तक आदमी सफ़ल नहीं हो सकता। और बलशाली होने के लियी उसे सोलह जो प्रतिकूल संचारी भाव है उन्हें समाप्त करना होगा। प्रकृति भी निर्बल को सताती हैं। दिया निर्बल होता है, थोड़ी सी हवा चलती है और उसे बुझा देती है। और वही दिया अगर आग बन जाये तो हवा उसे बढ़ा देती है, हवा भी सहायक बन जाती है। ताकतवान का साथ देती है हवा निर्बल कि नहीं बनाती। दोनों ही आग है और हवा एक ही है मगर जो ताकतवान है जो क्षमतावान है उसकी वह सहायक बनती है।

आप ताकतवान है तो आप पूर्ण सफलतायुक्त होते ही है और वह ताकतवान होना मन से संबधित है, विचारों से संबंधित है। और कृत्या का अर्थ यही है कि आप ताकतवान, और क्षमतावान बने। मगर मंत्र जप आप करते रहे, एक महिना, दो महिने छः महीन पांच साल दस साल - ऐसी विद्या मैं आपको नहीं देना चाहता। मंत्र तो दूंगा ही मगर इतना लंबा मंत्र नहीं कि पांच साल जप करो तब सफ़लता मिले। ऐसा नहीं। पहली बार में ही सफ़लता मिलनी चाहिऐ, पूर्ण सफ़लता मिलनी चाहिऐ।

जो भी मंत्र आपको दूंगा वह महत्वपूर्ण दूंगा, मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि आप एक साल मंत्र जप करें, पांच दिन करे मगर पुरी धारणा शक्ति के साथ करें गुरू को ह्रदय मे धारण करके करे। यह सोचिए कि गुरू के अलावा मेरे जीवन मे कुछ है ही नहीं। मैं यह नहीं कह रहा कि मैं आपका गुरू हूं तो आप मेरी प्रशंसा करी, आपके जो भी गुरू हों गुरू है तो है ही उनके बिना फिर सांस लेने कि भी क्षमता नहीं होनी चाहिए। और एक बार गुरू को धारण किया तो कर लिया, जो उसने कहा वह किया। फिर अपनी बुद्धि, अपनी होशियारी, अपनी अक्ल आप लडाएंगे तो आप ही गुरू बन जाएंगे, फिर कोई और गुरू बनाने कि जरूरत ही नहीं क्योंकि फिर आप ही गुरू है क्योंकि आप मुझसे ज्यादा गाली बोल सकते है, मुझसे ज्यादा झूठ बोल सकते है और मुझसे ज्यादा लडाई कर सकते है तो मुझसे योग्य हैं ही आप। मैं आपको जितना क्रोध कर नहीं सकता आपके जितना लडाई झगडा कर नहीं सकता। जीतनी शानदार २००० गलियां आप दे सकते है मैं दे ही नहीं सकता।

मगर साधनाओं मे आपसे ज्यादा क्षमता है, आपसे ज्यादा पौरुष है, आपसे ज्यादा साहस आपसे ज्यादा धारण शक्ति हैं। कृत्या का तात्पर्य यह भी है कि हममे साहस हो, पौरुष हो, धारणा शक्ति ह। कृत्या अपने आपमें एक प्रचंड शक्ति है जो भगवान शिव के द्वारा निर्मित हुई, जिसके कोई तूफान का अंत नहीं था। जब हूंकार करती थी तो दसों दिशाएं अपने आपमें कांपती थीं और उससे जो पैदा हुए उस कृत्या से वे वैताल जैसे पैदा हुए, धूर्जटा जैसे पैदा हुए, विकटा जैसे, अघोरा जैसे पैदा हुए। जो ग्यारह गण कहलाते हैं भगवान के वे कृत्या से पैदा हुए।

आपके जीवन में क्षमता साहस, जवानी पौरुष कृत्या साधना के माध्यम से ही आ सकती है। कृपणता, दुर्बलता, निराशा आपके जीवन में नहीं है, आप अपने ऊपर जबरदस्ती लाद लेते हैं हर बार लाद लेते है कि अब मैं कुछ नहीं कर सकता, मेरे जीवन में कुछ है ही नहीं।

और धीरे-धीरे आप, नष्ट होते जा रहे हैं। देश में जो चल रहा है, जो हो रहा है उसके लिए विज्ञान कर क्या रहा है हमारी उपयोगिता फिर क्या है हम फिर क्यों पैदा हुए हैं? ज्ञान क्या चीज है? पहले ज्ञान सही था तो अब ज्ञान सही क्यों नहीं हो रहा हां? मैं यह सिद्ध करना चाहता हूं।

मैं बताना चाहता हूं कि आयुर्वेद मे वह क्षमता है कि प्रत्येक रोग का निवारण कर सके। पहले किसी पौधी के पास खडे होते थे तो पौधा खुद खडा हो जाता था कि यह मेरा नाम है, यह मेरा गुण है, यह मेरा उपयोग है और मनुष्य जीवन के लिए मैं इस प्रकार उपयोगी हूं। पेड पौधे पहले इतना बोलते थे तो आज भी बोलते होंगे जरूर। उस समय वनस्पति खुद बोलती थी। आज भी बोलती है मगर हममे क्षमता नहीं कि हम समझ पाएं।

आपमें क्षमता हो, साहस हो पौरुष हो ऐसा मैं आपको बनाना चाहता हूं। आप बोले और सामने वाला थर्रा नही जाए तो फिर आप हुए ही क्या।

मैंने यह समझाया कि कृत्या क्या है और हमारे जीवन में क्यों आवश्यक है। कृत्या कोई लडाई झगडा नहीं है, कृत्या मतभेद नहीं है। कृत्या आपको प्रचंड पौरुष देने वाली एक जगदम्बा देवी है। कृत्या किसी को नष्ट कराने के लिए नहीं परंतु आपके पौरुष को ललकारने वाली जरूर है, हिम्मत, और हौंसला देने वाली जरूर है, वृद्धावस्था को मिटाने वाली जरूर है।

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