शनिवार, 24 जुलाई 2010

इच्छाएं

संसार में प्रत्येक व्यक्ति सदैव यही कामना करता रहता है कि उसे मन फल मिले| उसे उसकी इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो| जो वह सोचता है कल्पना करता है, वह उसे मिल जाये| भगवान् से जब यह प्रार्थना करते है तो यही कहते हैं, कि हमें यह दे वह दे| प्रार्थना और भजनों में ऐसे भाव छुपे होते हैं, जिनमें इश्वर से बहुत कुछ मांगा ही जाता है| यह तो ठीक है कि कोई या आप इश्वर से कुछ मंगाते है; प्रार्थना करते हैं| लेकिन इसके साथ ही यदि आप उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं करते और अपनी असफलताओं; गरीबी या परेशानियों के विषय में सोच-सोचकर इश्वर की मूर्ती के सामने रोते-गिडगिडाते हैं उससे कुछ होने वाला नहीं है| क्योंकि आपके मन में गरीबी के विचार भरे हैं, असफलता भरी है, आपके ह्रदय में परेशानियों के भाव भरे हैं और उस असफलता को आप किसी दैवी चमत्कार से दूर भगाना चाहते हैं| जो कभी संभव नहीं है|

आपके पास जो कुछ है, वह क्यों है? वह इसलिए तो हैं कि मन में उनके प्रति आकर्षण है| आप उन सब चीजों को चाहते हैं| जो आपके पास हैं| मन में जिन चीजों के प्रति आकर्षण होता है, उन्हें मनुष्य पा लेता है| किन्तु शर्त यह भी है कि वह मनुष्य उसी विषय पर सोचता है, उसके लिये प्रयास करता हो और आत्मविश्वास भी हो| जो वह पाना चाहता है उसके प्रति आकर्षण के साथ-साथ वह उसके बारे में गंभीरता से सोचता भी हो|

दृढ आत्मविश्वास और परिश्रम की शक्ति से आप भी सफलता को अपनी ओर खींच सकते हैं| ईश्वरीय प्रेरणाओं से आप शक्ति ले सकते हैं और अपनी अभिलाषाओं को पुरी कर सकते हैं|

आप अपने  जीवन स्वप्न को पूरा करते की दिशा में प्रयास करें| उसे ईश्वरीय प्रेरणा मानकर आगे बढे|

-सदगुरुदेव 

रविवार, 11 जुलाई 2010

साधनाओं के नियम

  • साधनाओं को कोई भी गृहस्थ संपन्न कर सकता है, इसके लिये किसी भी विशेष वर्ग या जाति के आधार पर कोई बन्धन नहीं है, जिसको भी इस प्रकार की साधनाओं में आस्था हो, वह इन साधनाओं को संपन्न कर सकता है|
  • इस प्रकार की साधनाओं में पुरुष या स्त्री, युवा या वृद्ध, विवाहित या अविवाहित जैसा कोई भेद नहीं है, कोई भी साधना संपन्न कर सकता है| महिलाओं के लिये रजस्वला-समय किसी भी प्रकार की साधना के लिए वर्जित है, जिस दिन रजस्वला  हो उस दिन से अगले पांच दिनों तक वह किसी भी प्रकार की साधना या पूजा अनुष्ठान संपन्न न करे, परन्तु यदि उसने अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया हो और बीच में रजस्वला हो गयी हो, तो उस अनुष्ठान या साधना को पांच दिनों के लिये छोड़ दे और छटे दिन स्नान कर, सर को धो कर, पवित्र होकर पुनः साधना या अनुष्ठान प्रारम्भ कर सकती है, ऐसा होने पर साधना में व्यवधान नहीं माना जाता| पीछे जहां तक साधना की है या जीतनी संख्या में जप कर ली है, उसके आगे की गणना की जा सकती है|
  • प्रत्येक साधना की जप संख्या, दिनों की संख्या निश्चित होती है; तब तक साधना चलती रहे, उस अवधि में साधक को चाहिए कि एक समय भोजन करें और सात्त्विक आहार ग्रहण करें, मांस, शराब, प्याज, लहसुन आदि वर्जित है; भोजन का सीधा सम्बन्ध है, अतः शुद्ध खान-पान के मामले में सतर्कता बरतें, होटल में खाना यथासंभव टालें, क्योंकि वहां पर शुद्धता का पूरा ध्यान नहीं रह पाता, जो कि इस कार्य के लिये आवश्यक होता है|
  • साधना करते समय किसी भी प्रकार की वस्तु खाना या सेवन करना अनुकूल नहीं हैं, व्यक्ति मंत्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व दूध, चाय या भोजन ले सकता है| जब मंत्र जप चालू हो तब चाय, जल, भी पीना वर्जित है, यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न भी हो जाये, तो इसके बाद पवित्रीकरण करने के उपरांत ही पुनः मंत्र जप प्रारम्भ करना चाहिए|
  • साधनाकाल में यथासंभव भूमि पर सोना उचित रहता है, भूमि पर किसी भी प्रकार का बिछौना सो सकते हैं, विशेष परिस्थितियों में पलंग आदि का उपयोग कर सकते हैं, परन्तु जहां तक संभव हो भूमि शयन ही करें|
  • साधनाकाल में स्त्री संसर्ग सर्वथा वर्जित है, इस अवधि में पूरी तरह से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, इस अवधि में फ़िल्मी पत्रिकाएं पढ़ना, सिनेमा देखना, अन्य स्त्रियों से लम्बिई बातचीत करना आदि निषेध है, यथासंभव मन को संयत और शांत बनाए रखें|
  • साधना प्रारम्भ करने से पूर्व स्नान कर लेता उचित रहता है, यदि बीमार हो या अशक्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में कपड़ा भिगोकर पुरे शरीर को पौंछ लेता चाहिए, परन्तु जहां तक हो सके स्नान करना ही उत्तम माना जाता है|
  • पैंट, निकर या पायजामा पहन कर साधना नहीं की जा सकती, इसके लिये धोती पहनना उचित माना गया है|
  • एक धोती कमर के नीची पहिन लें और गुरु पीताम्बर ओढ़ लें, परन्तु यदि सर्दी का मौसम हो, तो उनी कम्बल भी ओढ़ सकता है, धोती  हमेशा धूलि हुई स्वच्छ हो|
  • साधना काल में क्षौर कर्म नहीं करवाना चाहिए, अर्थात सर के या दाढ़ी के बाल नहीं कटावें|
  • साधना काल में बीडी-सिगरेट, तम्बाकू, पान आदि का सेवन वर्जित है, जितने दिन तक साधना चले उतने दिन तक किसी प्रकार का व्यसन न करें|
  • साधना काल में स्नान करते समय साबुन का प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु इत्र आदि का प्रयोग न करें, साधना के बाद कहीं बहार जाते समय जूतों का प्रयोग किया जा सकता है|
  • यदि साधक नौकरी या व्यापार कर रहा हो और रात्रिकालीन साधना हो, तो दिन में नौकरी कर सकतें, यदि साधना पूरी होने तक व्यापार अथवा नौकरी से अवकाश ले लें, तो ज्यादा उचित रहता है|
  • साधना काल में सिनेमा देखना या किसी राग-रंग, गायन, संगीत महफिल आदि में भाग लेता वर्जित है|
  • साधना काल में कम से कम बोलें, बहुत अधिक आवश्यक होने पर ही बातचीत करें और उतनी ही बातचीत करें, जीतनी जरूरी है, व्यर्थ में गप्पे लगाना बहस करना सर्वथा वर्जित हैं|
  • साधना घर के एकांत कक्ष में, किसी मन्दिर, नदी तट आदि स्थान पर जाकर की जा सकती है, पर इस बात का ध्यान रखें कि साधना स्थल ऐसा हो, जो शांत और कोलाहल से दूर हो; वह स्थान ऐसा होना चाहिए, जहां किसी प्रकार का व्यवधान उपस्थित न होता हो|
  • साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधना संबंदी सारे उपकरण चित्र, यंत्र, माला आदि एक स्थान पर एकत्र कर लेनी चाहिए, पूजन सामग्री की व्यवस्था भी पहले से ही कर लेनी चाहिए, साथ ही साथ अपने गुरु या साधना बताने वाले व्यक्ति से साधना से सम्बंधित सरे तथ्य पहले से ही भली प्रकार समझ लेने चाहिए|
  • कभी-कभी साधना काल में आखोने के सामने कई अजीबोगरीब दृश्य दिखाई पड़ते हैं, कई बार विचित्र आवाजें सुनाई पड़ती है, कई बार ऐसा भी अनुभव होता है, कि जैसे आपको कोई आवाज दे रहा हो, परन्तु इन बातों की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए और बराबर अपनी साधना में लगे रहना चाहिए|
  • साधना काल में अपने सामने जल का लोटा भर रख देना चाहिए, उबासी, जम्भाई या अपां वायु के निकलने पर जल को कानों से स्पर्श कर लेने से यह दोष मिट जाता है; यदि बीच में लघुशंका तेवर हो जाय, तो उठ कर लघुशंका कर लेता चाहिए, पर इसके बाद पुनः स्नान कर दूसरी धोती पहिन कर ही साधना में बैठना चाहिए|
  • साधनाकाल में माला हाथ से गिरानी नहीं चाहिए, इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखें, यदि गिर जाय, तो पुनः प्रारम्भ से मंत्र जप करना चाहिए, ज्यादा अच्छा यह होगा कि गौमुखी (माला रखने का वस्त्र) में माला रख कर मंत्र जप करें, जिससे कि माला गिरने की समस्या नहीं रहे, गौमुखी किसी भी प्रकार के कपडे की हो सकती हैं|
  • किसी भी प्रकार की साधना या मंत्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व दीक्षित होना जरूरी है, क्योंकि दीक्षा प्राप्त साधक ही अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता हैं; इसके बाद साधना प्रारम्भ करें, तो सबसे पहले एक माला गुरु मंत्र की जप कर, गुरु की पूजा कर उनके सामने निवेदन कर मंत्र जप प्रारम्भ करें, ऐसा क्रम नित्य रखना चाहिए, जिससे कि अप्रत्यक्ष रूप से गुरु सहायक बने रहे|
  • मंत्र जप के बीच में कैसी भी परिस्थिति आ जाय, उठाना नहीं चाइए, किसी से बातचीत होठों या संकेतों से नहीं करना चाहिए, यदि ऐसी परिस्थिति आ भी जाय तो उठ कर आचमन तथा पवित्रिकर्ण कर पुनः साधना में बैठे|
  • साधना के प्रति साधक को पूरा विश्वास और श्रद्धा होनी चाहिए, बिना आस्था, विश्वास के कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती|
  • साधक सर्वथा शांत बने रहे, किसी भी प्रकार का सन्देह मन में नहीं आवें और न उग्रता अथावा क्रोध ही प्रदर्शित करें, साधना की अवधि में अशुद्ध भाषण न करें, असत्य न बोलें और कोई ऐसा कार्य न करें जो निति के विरुद्ध हो, पूरी निष्ठा और गुरु आशीर्वाद लेकर साधना में प्रवृत्त होने से निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है| 
--- ये किसी भी प्रकार की साधना के आधारभूत तथ्य है, जो साधक को अपनाने चाहिए, ऐसा करने पर उसे सफलता स्वाभाविक रूप में मिल जाती है|

- सदगुरुदेव श्री अरविन्द श्रीमालीजी