tag:blogger.com,1999:blog-10874687775901738002024-03-14T03:37:49.210+05:30मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञानVikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.comBlogger82125tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-9450124160222204322018-10-29T16:41:00.002+05:302018-10-29T16:41:42.153+05:30दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन
भगवती श्री-लक्ष्मी का विधिवत पूजन जिसमे ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ का पूजन समाहित है |
श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यां बहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि
रूप मश्विनो! इष्णन्निषाणां मुम्म ईषाणा सर्वलोकम्म ईषाणा |
हे जगदीश्वर! ये समस्त ऐश्वर्य और समग्र शोभा अर्थात 'लक्ष्मी' और 'श्री' दोनों ही आपकी पत्नी तुल्य हैं, दिन और रात आपकी सृष्टि में विचरण करते रहते हैं, सूर्य चंद्र आपके मुख हैंVikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-49778392847865218022012-02-18T16:25:00.002+05:302012-03-02T10:17:38.179+05:30शास्त्रार्थ
हरिस्ते शान्तत्वं भवत जन कल्याण इति वै
समस्त ब्रह्माण्ड ज्ञनद वद श्रेयं परित च ।
ऋषिरवै हुंकार क्वच क्वद च शास्त्रार्थ करतुं
अहत हुंकारैर्ण श्लथ भवतु योगीर्न श्रीयतः ।।
सिद्धाश्रम अपने आप में शांत था और यहा स्थित तपस्वी आत्मकेंद्रित। पहली बार आपने उनके ज्ञान को, उनके पौरुष को और उनके जीवन को ललकारने का दुस्साहसVikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-61539539426914333952011-03-06T13:00:00.002+05:302011-03-06T13:00:00.940+05:30मृत्योर्मा अमृतं गमय - ४जो झूठ और असत्य से, छल और कपट से परे रहते हो| जिनका जीवन अपने आप में सात्विक हो, जो अपने आप में देवात्मा हो, अपने आप में पवित्र हों, दिव्य हो, ऐसे स्त्री और पुरुष श्रेष्ठ युगल कहें जाते हैं और यदि ऐसे स्त्री और पुरुष के गर्भ में हम जन्म लें, तो अपने आप में अद्वितीयता होती है, क्या हम कल्पना कर सकते हैं की देवकी के अलावा श्रीकृष्ण भगवान् किसी ओर के गर्भ में जन्म ले सकते थे? क्या हम सोच सकते हैं Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-24235549969043866392011-02-20T13:00:00.002+05:302011-02-20T13:00:01.238+05:30मृत्योर्मा अमृतं गमय - ३ जैसा कि मैंने अभी आपके सामने स्पष्ट किया कि हम मृत्योर्मा अमृतं गमय साधना से मनोवांछित आयु प्राप्त कर सकते हैं| इसके साथ एक और तथ्य की और हमारा ध्यान जाना चाहिए कि हममें यह क्षमता हो कि हम श्रेष्ठ गर्भ को धारण कर सके| एक मां तीन-चार पुत्रों या बालकों को जन्म दे सकती है और यदि उनमें से भी दुष्ट और दुबुद्धि आत्मा वाले बालक जन्म लेते हैं| तो मां-बाप को बहुत दुःख और वेदना होती है कि उन्होनें Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-41894367920642297012011-01-30T15:49:00.001+05:302011-01-31T21:32:12.828+05:30मृत्योर्मा अमृतं गमय - २क्या हम इस स्थिति को अपने-आप से टाल सकते हैं| यह तो अपने आप में पेचीदा और बहुत दुःखदायी स्थिति है कि हमने अपने जीवन को इतने सरल स्तर पर व्यतीत किया और इस पुरे जीवन को व्यतीत करने के बाद भी हमें कई वर्षों तक इस आत्मा में भटकना पड़ता है और वापिस जन्म नहीं ले पाते| जबकि हम चाहते है कि हमारा जन्म हो और जन्म लेने के बाद फिर हम इश्वर चिन्तन करें, जन्म लेने के बाद फिर हम साधनाएं करें, फिर हमें Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-15628865720828701092011-01-15T12:49:00.004+05:302011-01-15T13:01:28.201+05:30मृत्योर्मा अमृतं गमय - १ आज का यह प्रवचन अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण है, महत्वपूर्ण इसलिए कि संसार के जटिल प्रश्नों में से एक प्रश्न है जिसे हम सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और यह प्रश्न हजारों-हजारों वर्षों से भारतीय ऋषियों-महर्षियों, योगियों, तपस्वियों, साधुओं, संन्यासियों और वैज्ञानिकों का मस्तिष्क मंथन करता रहा है कि 'मृत्यु क्या है?' और 'अमृत्यु क्या है?' -
क्या मिर्त्यु से परे भी कोई चीज है? क्या Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-35719002219937463132011-01-01T18:40:00.002+05:302011-01-05T18:42:46.293+05:30पापांकुशा साधना यावत् जीवेत सुखं जीवेत |सर्वं पापं विनश्यति ||
प्रत्येक जीव विभिन्न योनियों से होता हुआ निरन्तर गतिशील रहता है| हलाकि उसका बाहरी चोला बार-बार बदलता रहता है, परन्तु उसके अन्दर निवास करने वाली आत्मा शाश्वत है, वह मारती नहीं हैं, अपितु भिन्न-भिन्न शरीरों को धारण कर आगे के जीवन क्रम की ओर गतिशील रहती है|
जो कार्य जीव द्वारा अपनी देह में होता है, उसे कर्म कहते हैं और उसके सामान्यतः दो भेद हैं -Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-30691717053680404842010-11-07T13:57:00.000+05:302010-11-07T13:57:49.869+05:30मंत्र जप प्रभाव जब तक किसी विषय वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती तो व्यक्ति वह कार्य आधे अधूरे मन से करता है और आधे-अधूरे मन से किये कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है| मंत्र के बारे में भी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, मंत्र केवल शब्द या ध्वनि नहीं है, मंत्र जप में समय, स्थान, दिशा, माला का भी विशिष्ट स्थान है| मंत्र-जप का शारीरिक और मानसिक प्रभाव तीव्र गति से होता है| इन सब प्रश्नों का समाधान आपकेVikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-28255764376763995832010-10-16T21:15:00.000+05:302011-02-05T19:51:32.118+05:30गुरु मंत्र रहस्य भाग -१ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
नए-नए साधक के मन में कुछ संशयात्मक प्रश्न, जो सहज ही घर कर बैठते हैं, वे हैं - मैं किस मंत्र को साधू? कौन सी साधना मेरे लिए अनुकूल रहेगी? किस देवता को मैं अपने ह्रदय में इष्ट का स्थान दूं?
ये प्रश्न सहज हैं, परन्तु इनके उत्तर इतने सहज प्रतीत नहीं होते, क्योंकि प्रथम तो इनके उत्तर कहीं भी स्पष्ट भाषा में नहीं मिलते, साथ ही यह बात भी निश्चित है, Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-84717165138976679232010-10-03T17:45:00.000+05:302011-02-05T19:52:09.120+05:30गुरु मंत्र रहस्य भाग - २ आखिर में उन्होनें आश्वस्त होकर निम्न बातें बताई| हमारा गुरु मंत्र 'ॐ परम तत्त्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः' का बाह्य अर्थ है, कि, - 'ही नारायण! आप सभी तत्वों के भी मूल तत्व हैं और सभी साकार और निर्विकार शक्तियों से भी परे हैं, हम आपको गुरु रूप में श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं|'...यह मंत्र किसी के द्वारा रचित नहीं है, जब गुरुदेव के चरण पहली बार दिव्य भूमि सिद्धाश्रम में पड़े, तो स्वतः ही दसों Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-14474671157020366272010-09-11T13:58:00.000+05:302011-02-05T19:52:04.078+05:30गुरु मंत्र रहस्य भाग - ३ 'अगला बीज है 'य', जिस्से बनाता है 'यम' (यम-नियम), अर्थात जीवन को एक सही, पवित्र एवं लय के साथ जीने का तरीका| इसके द्वारा व्यक्ति को एक अद्वितीय, आकर्षक शरीर प्राप्त हो जाता है और उसका व्यक्तित्व कई गुना निखर जाता है| जो कोई भी उसके सम्पर्क में आता है, वह स्वतः ही उसकी और आकर्षित हो जाता है और उसकी हर एक बात मानाने को तैयार हो जाता है|'
'एक और महत्वपूर्ण बात यह है, कि ऐसा व्यक्ति Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-56463670489889152632010-08-29T17:52:00.000+05:302011-02-05T19:51:38.243+05:30गुरु मंत्र रहस्य भाग - ४'अगले बीज 'यो' का अर्थ है - 'योनी'| मानव जन्म के विषय में कहा जाता है, कि यह तभी प्राप्त होता है, जब जीव विभिन्न, चौरासी लाख योनियों में विचरण कर लेता है, परन्तु इस बीज के दिव्य प्रभाव से व्यक्ति अपनी समस्त पाप राशि को भस्म करने में सफल हो जाता है और फिर उसे पुनः निम्न योनियों में जन्म लेना नहीं पड़ता|
'योनी का एक दूसरा अर्थ है - शिव कि शिवा (शक्ति), ब्रह्माण्ड का मुख्य स्त्री तत्व, Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-2483673987770469322010-08-08T15:30:00.000+05:302010-08-08T15:30:16.446+05:30जीवन के दुःख जो दुःख आया नहीं है उसे टाला जाना चाहिए | कोशिश करनी चाहिए उसे टालने की| जो दुःख वर्त्तमान में मिल रहा है उसे तो सहकर ही समाप्त किया जा सकता है| कर्म सिद्धांत के अनुसार भी जो कर्म परिपक्व हों दुःख देते हैं| उनसे किसी भी प्रकार से बच पाना संभव नहीं होता| उनसे छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता उन्हें भोग कर ही समाप्त करना होता है| परन्तु जो अभी आया नहीं है हम उसके आगमन को अवश्य रोक सकते हैं| जब Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-16683916853559118952010-07-24T19:44:00.002+05:302010-07-24T19:45:10.864+05:30इच्छाएंसंसार में प्रत्येक व्यक्ति सदैव यही कामना करता रहता है कि उसे मन फल मिले| उसे उसकी इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो| जो वह सोचता है कल्पना करता है, वह उसे मिल जाये| भगवान् से जब यह प्रार्थना करते है तो यही कहते हैं, कि हमें यह दे वह दे| प्रार्थना और भजनों में ऐसे भाव छुपे होते हैं, जिनमें इश्वर से बहुत कुछ मांगा ही जाता है| यह तो ठीक है कि कोई या आप इश्वर से कुछ मंगाते है; प्रार्थना करते हैं| लेकिन Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-68241262387221216642010-07-11T11:59:00.000+05:302010-07-11T11:59:06.360+05:30साधनाओं के नियमसाधनाओं को कोई भी गृहस्थ संपन्न कर सकता है, इसके लिये किसी भी विशेष वर्ग या जाति के आधार पर कोई बन्धन नहीं है, जिसको भी इस प्रकार की साधनाओं में आस्था हो, वह इन साधनाओं को संपन्न कर सकता है|
इस प्रकार की साधनाओं में पुरुष या स्त्री, युवा या वृद्ध, विवाहित या अविवाहित जैसा कोई भेद नहीं है, कोई भी साधना संपन्न कर सकता है| महिलाओं के लिये रजस्वला-समय किसी भी प्रकार की साधना के लिए वर्जित है, जिस दिनVikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-2579554788383870452010-06-27T20:31:00.000+05:302010-06-27T20:31:00.218+05:30युग परिवर्तनसंसार निरन्तर परिवर्तनशील है और समय के साथ-साथ व्यक्ति की मान्यताएं, भावनाएं और इच्छाएं बदलती रही हैं; कुछ समय पूर्व सामाजिक व्यवस्था ऐसी थी, जब व्यक्ति की आवश्यकताएं न्यून थीं और वे परस्पर मिल कर अपनी आवश्यकाओं की पूर्ति कर लेते थे, किसान अपना अनाज मोची को देता था और बदले में जूते बनवा लेता था, मोची चमड़े का काम करके दर्जी को देता था, और बदले में अपने कपडे सिलवा लेता था, इस प्रकार वे परस्पर Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-85700851372372105362010-05-08T20:14:00.002+05:302010-05-08T20:18:38.598+05:30तिमिरसूर्य की रश्मियों से ही चन्द्रमा में प्रकाश है और वह प्रकाशवान दिखाई देता है| जबकि यह दृश्य प्रत्यक्षतः स्पष्ट दिखाई नहीं देता है, कि सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर है और अन्य तारा मंडल पर पड़ रहा है और वे उसी से जगमगा रहे हैं| यह सब अदृश्य रूप से होता है और यह बात ध्रुव सत्य है| ठीक ऐसा ही शिष्य का जीवन होता है, उसके स्व के अन्दर कोई विशेषता नहीं होती, पर वह धीरे-धीरे प्रसिद्धि के शिखर की ओर Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-34712425188650790172010-04-18T14:09:00.000+05:302010-04-18T14:09:33.607+05:30कुल देवता - कुल देवी साधनाजिनकी कृपा से कु;परिवार में शान्ति एवं सम्पन्नता आती है| कुल देवी-कुल देवता पुरे परिवार की रक्षा करते हैं, आने वाले संकटों को हटा देते हैं| इसीलिए सारी पूजाओं में यज्ञ में कुल देवता-देवी पूजा का विधान है, कुल देवी-कुल देवता साधना करने से परिवार में पितृ दोष भी दूर हो जाता है|
जिस परकार मां-बाप स्वतः ही अपने पुत्र-पुत्रियों के कल्याण के प्रति चिंतित रहते हैं, ठीक उसी प्रकार कुलदेवता या कुलदेवी Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-46335311424709905822010-03-28T11:22:00.002+05:302010-03-28T16:36:48.557+05:30गुरु कृपा से कुल देवी की कृपा गुरु आये और मैं जान भी नहीं पाया लेकिनगुरुदेव तो कृपालु है,इस जन्म के क्या पूर्व जन्म के शिष्यों का ध्या रखते है
जब मैंने कुल देवी की कृपा प्राप्त की
यद्यपि मैं संन्यासी तो नहीं रहा हूं, पर अपनी आदतों और स्वाभाविक प्रवृत्तियों को देखकर मैं अपने आप को किसी संन्यासी से कम भी नहीं समझता था| अकेले ही जंगलों में भटकना, और जड़ी-बूटियों की खोज करना यह मेरा बचपन से शौक था| यद्यपि Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-42988505534383942962010-03-14T17:09:00.002+05:302010-03-15T22:59:45.683+05:30वास्तविक तंत्र क्या है ?- ऐसी ही कुछ सामाजिक कुरीतियों के कारण तंत्र जैसी गौरवशाली विधा घृणित हो गई, परन्तु तंत्र में बलि का तात्पर्य क्या नर बलि या पशु बलि से है ?
मंत्र साधनाओं एवं तंत्र के क्षेत्र में आज लोगों में रूचि बड़ी है, परन्तु फिर भी समाज में तंत्र के नाम से अभी भी भय व्याप्त है| यह पूर्ण शुद्ध सात्विक प्रक्रिया है, विद्या है परन्तु कालान्तर में तंत्र साधनाओं में विकृतियां आ गई| समाज के कुछ ओछे व्यक्तियों ने Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-61569546708675383892010-02-28T19:29:00.001+05:302010-02-28T19:31:31.209+05:30समर्पणकथा महाभारत के युद्ध की है| अश्वत्थामा ने अपने पिता की छलपूर्ण ह्त्या से कुंठित होकर नारायणास्त्र का प्रयोग कर दिया| स्थिति बड़ी अजीब पैदा हो गई| एक तरफ नारायणास्त्र और दुसरी तरफ साक्षात नारायण| अस्त्र का अनुसंधान होते ही भगवान् ने अर्जुन से कहा - गांडीव को रथ में रखकर नीचे उतर जाओ ... अर्जुन ने न चाहते हुए भी ऐसा ही किया और श्रीकृष्ण ने भी स्वयं ऐसा ही किया| नारायणास्त्र बिना किसी Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-5416487687386364042010-02-12T10:43:00.000+05:302010-02-12T10:43:08.860+05:30शिवरात्री विशेष प्रार्थनागुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः अखण्ड मंडलाकार व्याप्तं येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरुदेव ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव स्वरूप हैं| तथा साक्षात परब्रह्म स्वरुप हैं उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कार हो| गुरु अखण्ड और ब्रह्म स्वरुप में समस्त चराचर में व्याप्त हैं, उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कार है |
देवो गुण त्रयातीत Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-44027472709135701392010-01-28T06:00:00.009+05:302011-04-26T10:47:23.435+05:30दुर्लभ यंत्र और मालाकामदेव यंत्र
'काम' का तात्पर्य है क्रिया और यह क्रिया जब पूर्ण आवेश के साठ संपन्न की जाती है तो जीवन में कार्यों में सफलता प्राप्त होती है| कामदेव प्रेम और अनंग के देवता है और ये जीवन प्रेम-अनंग के साठ आनन्द पूर्वक जीते हुए अपने व्यक्तित्व में ओझ, अपनी शक्ति में वृद्धि के लिये ही बना है इस हेतु कामदेव साधना श्रेष्ठ साधना है| गृहस्थ व्यक्तियों के लिये कामदेव साधना वरदान स्वरुप है| जिसका मंत्र जप Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-51280351458245904472010-01-15T23:36:00.001+05:302010-01-16T13:08:12.479+05:30गुरु भजनVikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1087468777590173800.post-86927226522993346662010-01-01T15:04:00.001+05:302010-03-18T17:40:40.934+05:30श्री नारायण दत्त श्रीमालीजी - भाग १
चौरासी लाख योनियों में जीव जन्म लेते-लेते अंत में मनुष्य को जन्म मिलता है। मनुष्य योनी में भी जीवन के अनेक रसों, भोगों में लिप्त होने बाद जब उसे जीवन की निःस्सारता का बोध होता है, वहीं क्षण इश्वर के पथ पर, आत्म कल्याण एवं परमानंद के पथ पर बढ़ा पहला कदम होता है। और यही से प्रारंभ होती है उसकी खोज, जो की सदैव से ही ज्ञानियों के लिए विचारणीय विषय रहा है, कि परमात्मा का स्वरुप क्या है?
और जब जीव Vikramhttp://www.blogger.com/profile/04778775507951515622noreply@blogger.com1