गुरुवार, 29 जनवरी 2009

सदगुरुदेव का नव वर्ष संदेश - जिन्हें अवश्य अपनाएं

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं,

हमें गर्व है कि हमारा सिद्धाश्रम साधक परिवार, सदगुरु कृपा से निरंतर बढ़ता जा रहा है। अब समय आ गया है कि यह परिवार संगठित रूप से महान कार्य कर सकता है और प्रत्येक साधक क्रियाशील है। साधक और शिष्य होने के साथ आपका घर-परिवार, गुरु, समाज सबके लिए कर्तव्य है और आप में क्षमता है कि आप सहज रूप से इन्हें पूरा कर सकते है।

आओ हम सब मिलकर स्वागत करें, नूतन वर्ष का...
कुछ विशेष संदेश, जिन्हें अवश्य अपनाएं


* अपने लिए और अपने परिवार के लिये तो हर कोई जीता है। मनुष्य क्या, पशु-पक्षी भी। आप अपनी उन्नति पर अवश्य ध्यान दे। लेकिन इसके साथ आप समाज के प्रति भी कर्तव्य है इस हेतु कुछ न कुछ कार्य अवश्य करें। समाज की कुछ निस्वार्थ सेवा का संकल्प अवश्य लें और करें।

* इस प्रकृति ने आपको बहुत कुछ दिया है, इसका ऋण कभी भी नहीं उतर सकता है। इसकी सेवा का एक ही उपाय है कि आप वृक्ष लगाएं। वृक्ष लगाकर भूल नहीं जाये उनका पालन-पोषण भी करें। जिस प्रकार आप अपने बच्चे का पालन-पोषण करते हैं उसी प्रकार उनका ध्यान रखते हुए उन्हें पनपाएं।

* वर्ष में एक बार परिवार के साथ भ्रमण हेतु तीर्थ स्थल अथवा किसी पर्यटन स्थल पर अवश्य जाएं।

* आप शिष्य है और गुरु आपसे इतना ही चाहते है कि वर्ष में एक बार उनसे मिलने किसी शिविर अथवा गुरुधाम, जोधपुर, दिल्ली में अवश्य आयें।

* आप स्वयं विचार करें कि आपकी आदतों में कौन-सी आदत सबसे बुरी है, बस उस आदत को छोड़ दें। शुरुआत तो करें।

* टीवी देखना, फ़िल्म देखना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इसकी अति भी उचित नहीं है। इसके साथ ही नित्य प्रति पुस्तकें और अच्छा साहित्य आदि पढ़ने की भी आदत डालें।

* अपने घर में नित्य पूजन अवश्य करें, यह पूजन केवल धुप-दीप से भी हो सकता है। पांच मिनट के लिये हे करें, लेकिन करें अवश्य।

* आपको गुरु आरती याद है यह बहुत अच्छी बात है। इसके साथ ही आपको 'राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत' 'जन-गण-मन...' और 'वन्देमातरम...' भी अवश्य याद होना चाहिए।

* मैं नहीं कहता की होटल , रेस्टोरंट इत्यादि में बाहर कभी खाना खाएं ही नहीं लेकिन इतना तो अवश्य कहूंगा कि ये पिज्जा, सैंडविच, बर्गर, कोल्ड-ड्रिंक्स, खाना उचित नहीं है। इन्हें छोड़ दें, आप छोड़ देंगे तो बच्चे भी छोड़ देंगे तथा शरीर स्वस्थ बनेगा।

* स्वस्थ जीवन के लिये आवश्यक है कि थोडा शारीरिक व्यायाम किया जाये, नित्य प्रति भ्रमण-व्यायाम, योगाभ्यास की आदत डाले तो आधी से आधिक बीमारियां तो आपके पास आयेगी ही नहीं।

* आपको क्रोध आता है यह ठीक भी हो सकता है और नहीं भी। इसका निर्णय तो क्रोध शांत होने पर आप स्वयं ही कर सकते है। लेकिन क्रोध में गालियां, अपशब्द बोलना तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। इसे छोड़ दे।

* अपनी पत्नी तथा बच्चों की तुलना कभी भी दूसरों से नहीं करें। आपके घर को आपकी पत्नी ने ही संवारा है और बच्चे आपका ही स्वरुप है, उन्हें पूरा प्यार दें।

* शरीर में निरन्तर नया रक्त बनता रहता है और यह क्रिया जीवन भर चलती रहती है। यदि आप छः महीने में एक बार रक्तादान करते है तो उससे कोई कमजोरी नहीं आयेगी, रक्त दान समाज की सबसे बड़ी सेवा है। विचार कीजिये कि आपका खून किसी की जान बचा रहा है।

* विश्वास की शक्ति पर भरोसा रखें, विश्वास और दृढ़ विश्वास आपको लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होगा।

* कोई आपकी थोडी प्रशंसा कर देता है तो आप गर्व से फूल जाते है और कोई आपकी थोडी निंदा करता है तो आप क्रोध से भर जाते है या डर जाते है। याद रखे कि आपका स्वयं का एक व्यक्तित्व है जो प्रशंसा और निंदा के अधीन नहीं है। स्वयं को जानिये।

* गुरु और देवता में आस्था का भाव जागृत होना एक महान घटना है और आस्था में चमत्कारिक शक्ति है। छोटी-मोटी बातों से अपनी आस्था का भाव मन से मत हिलायिये, आपकी आस्था हिमालय के समान दृढ़ और अविचलित होनी चाहिए।

* क्या आप कभी कोई गीत-गाते है कोई वाद्य यंत्र बजाते है अथवा गुन-गुनाते है। और कुछ नहीं तो चुपचाप कुछ सोचते हुए ताली ही बजाएं। एक बार इसे भी अपना के देखिये, आप किस प्रकार मन को शक्ति देते है और आनंद आता है।

* यह जीवन आपका है, कोई रेडिमेड कपडा अथवा कंपनी का शो-रूम नहीं है। जीवन को ख़ुद हि गढ़ना पड़ता है। जीवन जीने का ढंग आपको ही बनाना है। आप शुरुआत तो कीजिये।

ये सब आप कर सकते है, क्योंकि आप साधक है, शिष्य है और गुरु तो सदगुरुदेव निखिल है।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
- गुरुदेव
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान, जनवरी २००९

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

मेधा सरस्वती साधना

बालकों में ज्ञान चेतना, स्मरण शक्ति अभिवृद्धि हेतु

बालकों में सीखने समझने की क्षमता विशेष रूप से होती है इसलिए बालकों को सरस्वती-साधना अवश्य करनी चाहिए। यह केवल उनका ही नहीं, उनके माता-पिता का भी कर्तव्य है कि बालक सरस्वती-वन्दना नियमित रूप से अवश्य करें। मैंने अपने जीवन में देखा है कि व्यक्ति अपने भीतर तो ज्ञान बहुत समेटे होते हैं लेकिन जब उन्हें बोलने को कहा जाता है, तो वाणी जैसे लड़खडाने लग जाती है, कहना कुछ चाहते है, और बोलते कुछ और ही हैं। इसी प्रकार नौकरी के इंटरव्यू में जो असफल रहते है, उसका कारण अपने आप को, अपने ज्ञान को सही रूप से प्रस्तुत करने की कमी होती है और यह दोष उनके जीवन को साधारण बना देता है, ऐसे व्यक्ति सफल नहीं हो पाते।

प्रातः काल साधक जल्दी साधक जल्दी उठ जाय और स्नान आदि से निवृत्त हो कर वसन्ती वस्त्र धारण करें, या पीले वस्त्र पहने, फिर घर के किसी स्वच्छ कमरे में या पूजा-स्थान में अपने परिवार के साथ बैठ जाए, यदि संभव हो तो सामने सरस्वती का चित्र स्थापित कर दें।

इसके बाद एक थाली में, "सरस्वती यंत्र" का अंकन निम्न प्रकार से करें। यंत्र-अंकन चांदी की शलाका से करें।
साधकों को चाहिए कि वह पहले से ही चांदी की शलाका या चांदी का एक तार बनवा कर अपने पास रख लें। इसके बाद एक कटोरी में 'अष्ठ्गंध' घोल दें। अष्टगंध में आठ महत्वपूर्ण वस्तुओं का समावेश होता है जो कि अत्यन्त दिव्य होता है। कहते है कि भगवान् श्रीकृष्ण के शरीर से अष्टगंध प्रवाहित होती रहती थी। इसके बाद सामने थाली में इस अष्टगंध से ही निम्न प्रकार से सरस्वती यंत्र चांदी की शलाका से अंकित करें।

फिर इस अंकन पर 'सरस्वती यंत्र' रखें। सरस्वती यंत्र प्रत्येक साधक या बालक अथवा बालिका के लिए अलग-अलग होता है, ये यंत्र-मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त चैतन्य मंत्र से सिद्ध होने चाहिए।

इसके बाद अलग पात्र में इन यंत्रों को कच्चे दूध से धो कर फिर जल से धोएं और पौंछ कर जिस थाली में सरस्वती यंत्र अंकित किया गया था, उस पर इन सभी यंत्रों को रख दें, और उन पर अष्टगंध का तिलक करें, पुष्प चढावें, सामने अगरबत्ती और दीपक लगावें और दूध का बना प्रसाद समर्पित करें, सभी यंत्रों के लिए केवल एक ही दीपक जलाना पर्याप्त है।

इसके बाद सरस्वती मंत्र की एक माला मंत्र-जप घर का मुखिया करे या जितने भी बालक बालिकाएं है, वे सभी मात्र एक-एक माला सरस्वती मंत्र जप करें।

सरस्वती मंत्र
॥ ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः ॥

इसके बाद सामने सरस्वती-चित्र रख दें, उसकी उपेक्षा संक्षिप्त पूजा करें और उसके सामने पुष्प चढावें, यदि संभव हो तो स्वयं और अपने बालकों को भी पीले पुष्पों की माला पहनावें।

इसके बाद घर का मुखियां चांदी की शलाका से अष्टगंध के द्वारा प्रत्येक साधक या बालिका या पत्नी की जीभ पर "ऐं" (सरस्वती बीज मंत्र) लिख लें और फिर अपनी स्वयं की जीभ पर भी इस बीज मंत्र को अंकित करे। इसके बाद चांदी की शलाका को धो कर रख दें।

मंत्र-तंत्र-यंत्र पत्रिका, दिसम्बर २००८

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

सर्वोच्च अनुभूति

अनुभूतियों की बात कितनी भी करें...

परन्तु जब बछडा दौड़ कर अपनी माँ के थन से दूध पीने लगता है, तो उसे क्या अनुभूति होती है ?

जब गौरैया का छोटा सा बच्चा अपनी माँ के डैनों में दुबक कर अपने को सुरक्षित महसूस करने लग जाता है, तो उसे क्या अनुभूति होती है ?

और जब शिष्य गुरु चरणों में पहुँच कर अपने आप में आत्म-विभोर हो जाता है, तो उसे क्या अनुभूति होती है?

क्या इसे शब्दों में बांधा जा सकता है?

क्या इसे किसी मापदण्ड पर नापना संभव है?

जिसने गुरु प्रेम में अपने को रंग लिया, उसे इससे बड़ी अनुभूती और कौन सी चाहिए?

गुरुदेव की एक प्यार भरी नजर के सामने सभी अनुभूतियां बौनी है, क्योंकि सदगुरु की एक नजर के लिए तो देवता भी तरसते हैं। यही सर्वोच्च अनुभूति है।

मेरे सदगुरुदेव निखिल तो वह शक्ति है, जो मुझे निरन्तर शाश्वत रूप से चेतना देते रहते हैं, जो अपने शांत स्वरूप के अनुरूप शांति प्रदान करते हैं। जो आकाश से भी परे हैं, अर्थात किसी लोक में स्थित न होकर के अपने शिष्यों के ह्रदय में स्थित है, जिन्हें किसी बिन्दु द्वारा, किसी कला द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उनका स्वरुप तो शिष्यों के तेज के में व्याप्त है। ऐसे ही प्रिय सदगुरुदेव मेरे निखिल हैं।

जो परम तत्व को बोध करने वाले हैं, जिनके जीवन में आने से अंधकार, आर्ट, विषाद समाप्त हो जाते हैं, और मन में परम तत्व का परमानन्द जाता है और जो हर समय यही कहते हैं -

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णं मेवाव शिष्यते ॥


अर्थात जो स्वयं तो पूर्ण हैं ही, अपने शिष्य को भी पूर्णता प्रदान करते हुए उसे सम्पूर्ण अर्थात पूर्णतायुक्त व्यक्ति बनाते है, जो शिष्य रुपी श्रेष्ठ रचना का निर्माण करते हैं, वे ही तो मेरे प्रिय सदगुरुदेव निखिल हैं, जिनके बारे में केवल इतना ही कहा जा सकता है -

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुच्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देव देव ॥