शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

शास्त्रार्थ

हरिस्ते शान्तत्वं भवत जन कल्याण इति  वै
समस्त ब्रह्माण्ड ज्ञनद वद श्रेयं परित च ।
ऋषिरवै हुंकार क्वच क्वद च शास्त्रार्थ करतुं  
अहत हुंकारैर्ण  श्लथ भवतु योगीर्न श्रीयतः ।।  
         
सिद्धाश्रम अपने आप में शांत था और यहा स्थित तपस्वी आत्मकेंद्रित। पहली बार आपने उनके ज्ञान को, उनके पौरुष को और उनके जीवन को ललकारने का दुस्साहस किया, पहली  बार आपने उनके 'अहं' को चोट दी, पहली बार आपने उनको बताया, कि केवल एक स्थान पर बैठ कर साधना या तपस्या करने से कुछ नहीं होता; अपितु समाज में जाकर आपने ज्ञान के सूर्य की रश्मियां फैलाने में ही पूर्णता है। 'स्व ' को विकसित करने की अपेक्षा समस्त ब्रह्माण्ड को और उसमें स्थित प्राणियों को विकसित करने से ही पूर्णता और श्रेयता प्राप्त हो सकती है ।

पहली बार आपने विव्दाग्नी ऋषि के प्रचंड क्रोध का सामना किया, पहली बार सुश्रवा, मुद्गल आदि ऋषियों से शास्त्रार्थ कर उनके अहं को परास्त किया, और पहली बार आपने सिद्धाश्रम में डंके की चोट पर ऐलान किया - "जिस किसी भी में अहं हो और जो भी योगी, संन्यासी, सिद्ध किसी भी स्थान पर, किसी भी विषय पर, कभी भी शास्त्रार्थ करना चाहे, मैं तैयार हूं।

पर आपकी इस हुंकार ने उनको अपनी-अपनी कुटियाओं में दुबक कर बैठने के लिए विवश कर दिया ।

नतमस्तक होना और पराजित होना तो शायद आपने सीखा ही नहीं। जीवन में जो कुछ भी किया, पूर्ण पौरुषता के साथ किया । आपने अपने ज्ञान से, अपनी चेतना से इस बात को समझा कर पुरे सिद्धाश्रम  में यह स्पष्ट कर दिया, कि आप से टक्कर लेने वाला कोई दुसरा योगी, यति या संन्यासी पैदा ही नहीं हुआ, और अभी हजार वर्ष तक भी कोई पैदा नहीं हो पाएगा ।

एक प्रकार से देखा जाय, तो भारतीय ज्ञान को पूर्णता के साथ स्पष्ट करने की क्रिया केवल आप ही के माध्यम से हुई है । यदि वेद को कोई आकार दे दिया जाय, तो वह केवल आप हैं । आप स्वयं वेदमय हैं, वेद आप में समाहित हैं, और आपको देखकर ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की सांकार प्रतिमा आंखो के सामने स्पष्ट हो जाती है ।  

1 टिप्पणी:

  1. when you are overwhelmed, words fail to express the feelings and admiration for as great a soul as my Sadgurudev.It was my good past karmas that I found him and trying my best to come to his expectations , in spite of His not being around in his physical body but for me he is always around guiding me ..as he has been for last 25 births of mine...I am a blessed to be his shishya. In spite of in his invisibility ,I am trying my best to follow his guide lines as I understand it by his discourses, thru MTYV that I have been carefully preserving and reading them again and again...word by word...see Him in and listen to his pravachan in YouTube, and keep reading and preserving all that appears in the various magazines that his favorite disciples brings out. I am trying in my way to spread his wrds around the globe...thru my friend circle...

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