आपूर्णो अव कलशः स्वाहा सेक्तेव कोशं षिषिचे पिब्ध्ये ।
समु प्रिया आवृवृत्रण मदाय प्रद्क्षिणिदभी सोमासं इन्द्रम ॥
अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्यदेव द्वारा दिए गए अमृत वरदान से मानव का शरीर कलश शत-शत वर्षों से जीवन रस धारा में प्रवाहित हो रहा है।
देवी पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवती देवी की पूजा अर्चना की शुरुआत करते समय सबसे पहले कलश की ही स्थापना की जाती है। नवरात्रि के अवसर पर देवी मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी कलश स्थापित कर जगत जननी माता दुर्गा के शक्ति स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। अतः भारतीय संस्कृति में कलश स्थापना अत्यंत धार्मिक और व्यावहारिक कर्म है।
- मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका, मार्च २००८
shukriya bahut achhi jankari rahi
जवाब देंहटाएंसही है जी
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