परन्तु फिर तुममे और पशुओं में क्या अन्तर है? अन्तर यह है कि तुम इस रहस्य को ज्ञात कर सकते हो की प्रभु ने तुम्हे जीवन क्यों दिया है, जीवन का लक्ष्य क्या है? जीवन का लक्ष्य पूर्णता कि ओर अग्रसर होना है। और जो अपने जीवन में पूर्णता की ओर अग्रसर होने की क्रिया करता है, सोचता है, चिन्तन करता है, उसी का जीवन सार्थक है और यह सार्थकता तब हो सकती है, जब जीवन में पुण्यों का उदय हो ओर श्रेष्ठ गुरु मिल सकें।
और यदि जीवन में ऐसा कोई क्षण आए और हम गुरु को पहिचान लें, उनके चरणों को पकड़ लें - वह जीवन है। गुरु ने जन्म लिया है और जन्म लेकर पूर्णता प्राप्त की है, वे ही समझा सकते है, कि जीवन को कैसे पूर्णता दी जा सकती है।
जीवन के श्रेष्ठता तो आखों में, जीवन में रोम-रोम में और प्रत्येक अणु-अणु में एक आनंद, एक मस्ती एक हिलोर भर देना है, इसलिए मैं तुम्हे उस सागर में हिचकोले खाने की क्रिया सिखा रहा हूं जहां श्रेष्ठता है, जहां मस्ती है, जहां सुख है। और जीवन की इस यात्रा का प्रारम्भ जहां मनुष्य जन्म से है, वही अंत इष्ट से साक्षात्कार में है। यह रास्ता आनन्दप्रद है, यह रास्ता मधुरता का है, श्रेष्ठता का है। यह जीवन की प्रफुल्लता का है और सबसे बड़ी बात है की प्रेम के माध्यम से जीवन के अणु-अणु, जीवन के कण-कण और जीवन के रोम-रोम, जीवन के प्रत्येक कार्य में आनंद का अहसास आ जाता है, एक सुगंध और तरंग आ जाती है।
- सदगुरुदेव
bilkul sahi kaha bahut sundar badhai
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुकरिया
जवाब देंहटाएंgurudev is greate.one should absorb all their teachings.makes life complete.
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