जिस परकार मां-बाप स्वतः ही अपने पुत्र-पुत्रियों के कल्याण के प्रति चिंतित रहते हैं, ठीक उसी प्रकार कुलदेवता या कुलदेवी अपने कुल के सभी मनुष्यों पर कृपा करने को तत्पर रहते हैं, ठीक माता-पिता और एक कुशल अभिभावक की तरह जब अपने कुल के मनुष्यों को उन्नति करते, समृद्धि और साधन से युक्त होते हुए उस कुल के देवता देखते हैं, तो उन्हें अपूर्व आनन्द होता है|
मूल रूप से कुलदेवता अपनी कृपा कुल पर बरसाने को तैयार रहते हैं, परन्तु देवयोनि में होने के कारण बिना मांगे स्वतः देना उनके लिये उचित नहीं होता हैं| परन्तु यह देने की क्रिया तभी होती है, जब साधक मांग करता है| इसीलिए प्रार्थना, आरती पूजा का विधान होता है|
इस साधना द्वारा निश्चय ही कुलदेव की कृपा से जीवन संवर जाता है, और भौतिक सफलता के लिये तो यह शीघ्र प्रभावी साधना है|
व्यक्ति की पहचान सर्वप्रथम उसके कुल से होती है| प्रत्येक व्यक्ति का जिस प्रकार नाम होता है, गोत्र होता है, उसी प्रकार कुल भी होता है| 'कुल' अर्थात खानदान या उसकी वंश परम्परा| जिस वंश वह सम्बंधित होता है, वह वंश तो हजारो-लाखों वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन आज सामान्य व्यक्ति अपने कुल की तीन-चार पीढ़ियों से अधिक नाम नहीं जनता| यह कैसी विडम्बना है? यदि किसी व्यक्ति से उसके परदादा के भाइयों के नाम पूछे जाएं, तो वह बता नहीं पाता है| यह न भी याद रहे तो भी अपने कुल और गोत्र सदैव ध्यान रखना तो आवश्यक ही है क्योंकि प्रत्येक कुल परम्परा में उस कुल के पूजित देवी-देवता अवश्य होते हैं, इसलिए वार, त्यौहार, पर्व आदि पर स्वर्गीय दादा, परदादा दे साठ ही कुल देवता अथवा कुलदेवी को भोग अर्पण अवश्य ही किया जाता है|
कुल देवता का तात्पर्य है - जिस देवता की कृपा से कुल में अभिवृद्धि हुई है, परिवार को सड़ाव एक अबे छात्र प्राप्त होता रहा है| आज की तीव्र जीवन शैली में हम अपनी मूल संस्कृति से उतना अधिक सम्पर्कित नहीं रह सके हैं, परन्तु यदि कुल की परम्पराओं और कुल के अस्तित्व को देखना हो, तो आज भी भारत के कुछ प्रमुख नगरों को छोड़कर शेष सभी स्थानों में ख़ास कर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर भारतीय देव संस्कृति आज भी कई रूपों में जीवित है| कुल के देवताओं का अलग से मन्दिर होता है, उनकी पूजा होती है, और मात्र इसी के कई प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियाँ में उनकी रक्षा होती है|
वाल्मीकि रामायण में देखने को मिलता है कि विश्वामित्र के आश्रम में विद्या अर्जित कर पुनः लौटने पर भगवान् राम ने अपने कुल के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए साधना की थी| राजमहल के अन्दर ही एक मन्दिर में सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था, जिसके कारण वे आने वाले समय में युगपुरुष सिद्ध हो सके|
यदि ध्यान दिया जाए, तो विशेष साधनाओं के पूर्व जिस प्रकार गणपति पूजन, गुरु पूजन, भैरव स्मरण आदि रूप से आवश्यक रूप से संपन्न किया जाता है, उसी प्रकार संक्षिप्त रूप में 'कुलदेवताभ्यो नमः' प्रभूत शब्दों को भी उच्चारण किया जाता है| यह कुलदेवता के प्रति अभिवादन है जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो पूर्व साधना में सफलता प्राप्त हो सके| वस्तुतः कुल देवता ही साधक को समस्त प्रकार के वैभव, उन्नति, शक्ति, प्रतिष्ठा, सुख, शान्ति प्रदान करने में सक्षम होते हैं, यदि उन्हें साधना द्वारा प्रसन्न कर लिया जाए तो|
यह दो सप्ताह की साधना है जो, किसी भी अमावास्या से प्रारम्भ की जा सकती है| अर्थात यदि साधना सोमवार को प्रारंभ की जाए, तो पंद्रह दिन बाद सोमवार को ही उस साधना का समापन किया जाना चाहिए| इस साधना हेतु 'कुलदेवता यंत्र', कुलदेवी भैषज एवं प्रत्यक्ष सिद्धि माला की आवश्यकता होती है| इस साधना में कुल मिलाकर २१ माला प्रतिदिन मंत्र जप करना पड़ता है| यह विशेष कुलदेवी-कुलदेवता मंत्र है, जो कि आपको पत्रिका में मिलेगा|
-मंत्र-तंत्र-यंत्र पत्रिका जनवरी २००७