शनिवार, 29 मार्च 2008

वेंत की टोकरी

एक बार गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमालीजी अपने संन्यास जीवन से सम्बन्धित एक प्रसंग सुना रहे थे, यह प्रसंग उस समय का है जब वे दादा गुरुदेव से दीक्षा लेने के लिए प्रयासरत थे, जहां वे साधनारत थे वहीं पास में एक अन्य संन्यासी भी अपने शिष्य के साथ रह रहे थे। उन्हें जब ज्ञात हुआ, की स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी दादा गुरुदेव स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज का शिष्यत्व प्राप्त करना चाहते है, तो उन्होंने गुरुदेव को बुलाया और उनसे पूछा - क्या आपको विश्वास है, की स्वामी सच्चिदानन्द जी आपको दीक्षा देंगे? इस पर गुरुदेव ने कहा - हां वे मुझे दीक्षा अवश्य देंगे और अपना सान्निध्य भी प्रदान करेंगे। यह उत्तर सुनकर उन्होंने गुरुदेव को वापस भेज दिया।

अगले दिन प्रातः फिर बुलवाया और कहा - कल आपने कहा, की आप स्वामी सच्चिदानन्द जी से दीक्षा लेना चाहते है, मैं भी यहां पर कई वर्षों से उनका शिष्यत्व प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हूं। यह सुनकर गुरुदेव ने कहा - 'आप सही कह रहे है, कि उनसे दीक्षा प्राप्त करना अत्यंत कठिन है, पर मेरी तो उनसे निरन्तर प्रार्थना है, कि वे मुझे अपना शिष्य बनाएं और इसलिए मैं साधानाएं कर रहा हूं। गुरुदेव का उत्तर सुनकर स्वामी जी ने कहा - मुझे आपके दृढ़ निश्चय से प्रसन्नता हुई है। आज मै आपको एक कार्य सौंपना चाहता हूं। लेकिन उसमे आप अपनी साधनाओं या सिद्धियों का उपयोग नही करेंगे अपितु स्व प्रयास से उस कार्य को संपन्न करेंगे। गुरुदेव ने कहा - ठीक है आप आज्ञा दें। स्वामी जी ने कहा - आप यह वेंत कि टोकरी ले जाएं और इसमे जल भर कर ले आयें।

स्वामी जी के आश्रम से झील लगभग एक किलो मीटर दूर थी। गुरुदेव ने टोकरी उठाई और झील कि ओर चल पड़े। वहां जाकर उन्होंने टोकरी को जल में डाल कर जैसे ही उठाया टोकरी से पानी निकल गया। टोकरी को पुनः इसी प्रकार जल में डाला परन्तु जैसे बाहर निकालते उसका जल बह जाता। गुरुदेव सोचने लगे, कि साधना द्वारा भरना होता, तो यह क्षण मात्र में हो जाता, परन्तु ...

टोकरी को जल में डाल कर गुरुदेव ने अपना नित्य साधना-क्रम प्रारम्भ कर दिया। शाम होती देख गुरुदेव ने टोकरी उठाई, तो उसमे जल भरा हुआ था। जल से भरी टोकरी लेकर वे आश्रम पहुंचे, तो स्वामी जी ने पूछा जल ले आये। गुरुदेव ने उत्तर दिया - हां, यह लीजिये।

स्वामी जी मुस्कुरा दिये और पूछा - आपने यह कैसे सम्भव कर दिखायां? गुरुदेव ने कहा - मुझे आपके कथन पर विश्वास था, आपने टोकरी में जल लाने को कहा है, तो इस टोकरी में जल का आना सम्भव है; यही सोच कर मैं, इस टोकरी में जल ले आया। स्वामी जी ने कहा - आप वास्तव में स्वामी सच्चिदानन्द जी के शिष्य बनने योग्य है।

क्या साधना करते समय आपके मन में मन्त्र, सामग्री और गुरुदेव के प्रति इतना विश्वास रहता है?

यदि हां ..... तो फिर यह असम्भव ही नहीं कि आप साधना संपन्न करें और वहां सफलता न प्राप्त हो।

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