सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंन्द की वाणी से लक्ष्मी साधना के अद्वितीय
बीस सूत्र
प्रत्येक गृहस्थ इन सूत्रों-नियमों का पालन कर जीवन में लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान कर सकता है। आप भी अवश्य अपनाएं -- जीवन में सफल रहना है या लक्ष्मी को स्थापित करना है तो प्रत्येक दशा में सर्वप्रथम दरिद्रता विनाशक प्रयोग करना ही होगा। यह सत्य है की लक्ष्मी धनदात्री हैं, वैभव प्रदायक हैं, लेकिन दरिद्रता जीवन की एक अलग स्थिति होती है और उस स्थिति का विनाश अलग ढंग से सर्वप्रथम करना आवश्यक होता है।
- लक्ष्मी का एक विशिष्ट स्वरूप है "बीज लक्ष्मी"। एक वृक्ष की ही भांति एक छोटे से बीज में सिमट जाता है - लक्ष्मी का विशाल स्वरूप। बीज लक्ष्मी साधना में भी उतर आया है भगवती महालक्ष्मी के पूर्ण स्वरूप के साथ-साथ जीवन में उन्नति का रहस्य।
- लक्ष्मी समुद्र तनया है, समुद्र से उत्पत्ति है उनकी, और समुद्र से प्राप्त विविध रत्न सहोदर हैं उनके, चाहे वह दक्षिणवर्ती शंख हो या मोती शंख, गोमती चक्र, स्वर्ण पात्र, कुबेर पात्र, लक्ष्मी प्रकाम्य क्षिरोदभव, वर-वरद, लक्ष्मी चैतन्य सभी उनके भ्रातृवत ही हैं और इनकी गृह में उपस्थिति आह्लादित करती है, लक्ष्मी को विवश कर देती है उन्हें गृह में स्थापित कर देने को।
- समुद्र मंथन में प्राप्त कर रत्न "लक्ष्मी" का वरण यदि किसी ने किया तो वे साक्षात भगवान् विष्णु। आपने पति की अनुपस्थिति में लक्ष्मी किसी गृह में झांकने तक की भी कल्पना नहीं कर करतीं और भगवान् विष्णु की उपस्थिति का प्रतीक है शालिग्राम, अनंत महायंत्र एवं शंख। शंख, शालिग्राम एवं तुलसी का वृक्ष - इनसे मिलकर बनता है पूर्ण रूप से भगवान् लक्ष्मी - नारायण की उपस्थिति का वातावरण।
- लक्ष्मी का नाम कमला है। कमलवत उनकी आंखे हैं अथवा उनका आसन कमल ही है और सर्वाधिक प्रिय है - लक्ष्मी को पदम। कमल - गट्टे की माला स्वयं धारण करना आधार और आसन देना है लक्ष्मी को आपने शरीर में लक्ष्मी को समाहित करने के लिए।
- लक्ष्मी की पूर्णता होती है विघ्न विनाशक श्री गणपति की उपस्तिथि से जो मंगल कर्ता है और प्रत्येक साधना में प्रथम पूज्य। भगवान् गणपति के किसी भी विग्रह की स्थापना किए बिना लक्ष्मी की साधना तो ऐसी है, ज्यों कोई अपना धन भण्डार भरकर उसे खुला छोड़ दे।
- लक्ष्मी का वास वही सम्भव है, जहां व्यक्ति सदैव सुरुचिपूर्ण वेशभूषा में रहे, स्वच्छ और पवित्र रहे तथा आन्तरिक रूप से निर्मल हो। गंदे, मैले, असभ्य और बक्वासी व्यक्तियों के जीवन में लक्ष्मी का वास संभव ही नहीं।
- लक्ष्मी का आगमन होता है, जहां पौरुष हो, जहां उद्यम हो, जहां गतिशीलता हो। उद्यमशील व्यक्तित्व ही प्रतिरूप होता है भगवान् श्री नारायण का, जो प्रत्येक क्षण गतिशील है, पालन में संलग्न है, ऐसे ही व्यक्तियों के जीवन में संलग्न है। ऐसे ही व्यक्तियों के जीवन में लक्ष्मी गृहलक्ष्मी बनकर, संतान लक्ष्मी बनकर आय, यश, श्री कई-कई रूपों मे प्रकट होती है।
- जो साधक गृहस्थ है, उन्हें अपने जीवन मे हवन को महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए और प्रत्येक माह की शुक्ल पंचमी को श्री सूक्त के पदों से एक कमल गट्टे का बीज और शुद्ध घृत के द्वारा आहुति प्रदान करना फलदायक होता है।
- आपने दैनिक जीवन क्रम में नित्य महालक्ष्मी की किसी ऐसी साधना - विधि को सम्मिलित करना है, जो आपके अनुकूल हो, और यदि इस विषय में निर्णय - अनिर्णय की स्थिति हो तो नित्य प्रति, सूर्योदय काल में निम्न मन्त्र की एक माला का मंत्र जप तो कमल गट्टे की माला से अवश्य करना चाहिए।
मंत्र: ॐ श्रीं श्रीं कमले कमलालाये प्रसीद प्रसीद मम गृहे आगच्छ आगच्छ महालक्ष्म्यै नमः - किसी लक्ष्मी साधना को आपने जीवन में अपनायें और उसे किस मन्त्र से संपन्न करे उसका उचित ज्ञान तो केवल आपके गुरुदेव के पास ही है, और योग्य गुरुदेव अपने शिष्य की प्रार्थना पर उसे महालक्ष्मी दीक्षा से विभूषित कर वह गृह्य साधना पद्धति स्पष्ट करते है, जो सम्पूर्ण रूप से उसके संस्कारों के अनुकूल हो।
- अनुभव से यह ज्ञात होता है की बड़े-बड़े अनुष्ठान की अपेक्षा यदि छोटी साधानाए, मंत्र-जप और प्राण प्रतिष्ठायुक्त यंत्र स्थापित किए जाएं तो जीवन में अनुकूलता तीव्रता से आती है और इसमें हानि की भी कोई संभावना नहीं होती।
- जीवन में नित्य महालक्ष्मी के चिंतन, मनन और ध्यान के साथ-साथ यंत्रों का स्थापन भी, केवल महत्वपूर्ण ही नहीं, आवश्यक है। श्री यंत्र, कनक धारा यंत्र और कुबेर यंत्र इन तीनों के समन्वय से एक पूर्ण क्रम स्थापित होता है।
- जब कोई छोटे-छोटे प्रयोग और साधनाएं सफल न हो रही हों तब भी लक्ष्मी की साधना बार-बार अवश्य ही करनी चाहिए।
- पारद निर्मित प्रत्येक विग्रह आपने आप में सौभाग्यदायक होता है, चाहे वह पारद महालक्ष्मी हो या पारद शंख अथवा पारद श्रीयंत्र। पारद शिवलिंग और पारद गणपति भी आपने आप में लक्ष्मी तत्व समाहित किए होते हैं।
- जीवन में जब भी अवसर मिले, तब एक बार भगवती महालक्ष्मी के शक्तिमय स्वरूप, कमला महाविद्या की साधना अवश्य ही करनी चाहिए, जिससे जीवन में धन के साथ-साथ पूर्ण मानसिक शांति और श्री का आगमन हो सके।
- धन का अभाव चिंता जनक स्थिति में पहुंच जाय और लेनदारों के तानों और उलाहनों से जीना मुश्किल हो जाता है, तब श्री महाविद्या साधना साधना करना ही एक मात्र उपाय शेष रह जाता है।
- जब सभी प्रयोग असफल हो जाएं, तब अघोर विधि से लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय ही अंतिम मार्ग शेष रह जाता है, लेकिन इस विषय में एक निश्चित क्रम अपनाना पड़ता है।
- कई बार ऐसा होता है की घर पर व्याप्त किसी तांत्रिक प्रयोग अथवा गृह दोष या अतृप्त आत्माओं की उपस्थिति के कारण भी वह सम्पन्नता नहीं आ पाती, जो की अन्यथा संभव होती है। ऐसी स्थिति को समझ कर "प्रेतात्मा शांति" पितृ दोष शान्ति करना ही बुद्धिमत्ता है।
- उपरोक्त सभी उपायों के साथ-साथ सीधा सरल और सात्विक जीवन, दान की भावना, पुण्य कार्य करने में उत्साह, घर की स्त्री का सम्मान और प्रत्येक प्रकार से घर में मंगलमय वातावरण बनाए रखना ही सभी उपायों का पूरक है क्योंकि इसके अभाव में यदि लक्ष्मी का आगमन हो भी जाता है तो स्थायित्व संदिग्ध रह जाता है।
- मंत्र-तंत्र-यंत्र पत्रिका, फरवरी २००८
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