जैसा कि मैंने अभी आपके सामने स्पष्ट किया कि हम मृत्योर्मा अमृतं गमय साधना से मनोवांछित आयु प्राप्त कर सकते हैं| इसके साथ एक और तथ्य की और हमारा ध्यान जाना चाहिए कि हममें यह क्षमता हो कि हम श्रेष्ठ गर्भ को धारण कर सके| एक मां तीन-चार पुत्रों या बालकों को जन्म दे सकती है और यदि उनमें से भी दुष्ट और दुबुद्धि आत्मा वाले बालक जन्म लेते हैं| तो मां-बाप को बहुत दुःख और वेदना होती है कि उन्होनें जितना दुःख और कष्ट उठाया, उसके बावजूद भी उन्हें जो फल मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पाया| इसकी अपेक्षा आप यह कल्पना करें कि एक ही बालक उत्पन्न हो, मगर वह अद्वितीय हो| ज्ञान के क्षेत्र में सिद्धहस्त हो, पूर्ण हो, महान हो, चाहे विज्ञान के क्षेत्र में हो, चाहे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में हो, चाहे गणित के क्षेत्र में हो, चाहे रसायन विज्ञान के क्षेत्र में हो| जिस भी क्षेत्र में हो विश्व विख्यात हो, अद्वितीय ह, श्रेष्टतम हो ऐसा बालक जन्म दे| यह तो प्रत्येक मां-बाप कल्पना करता है| प्रत्येक मां-बाप चाहता है कि एक ही उत्पन्न हो मगर सूर्य के सामान हो, एक ही उत्पन्न हो मगर चन्द्रमा के समान तेजस्वी हो| हजार-हजार तारों का भी जन्म देने से उतना अंधियारा नहीं छट सकेगा, जितना एक चन्द्रमा को जन्म देने से उस अंधियारों को हम दूर सकते हैं| मगर जैसा मैंने यह बताया कि यह आपके बस की बात नहीं हैं|
आप तो गर्भ खोल सकते हैं, गर्भ में कौनसी दुष्ट आत्मा प्रवेश कर जायेगी यह आपके आधिकार क्षेत्र के बाहर है यह आपकी सबसे बड़ी विडम्बना है और जैसा कि मैंने अभी बताया कि उन आत्माओं में भी होड़ मची रहती है, एक दुसरे को ठेलते हुए जो ताकतवान है, जो क्षमतावान है, जो दुष्ट है वे आगे बढ़कर के और दूसरों को पीछे धकेल कर के उस समय खुले हुए गर्भ में प्रवेश कर जाते हैं और जो योगी है, जो श्रेष्ठ है, जो संत है जो विद्वान् है, जो सरल है, जो निपृह वे पीछे खड़े रहते हैं कि कभी हमारा अवसर आये और हम किसी गर्भ में प्रवेश करें| इसीलिए मां-बाप के पास में ऐसी कोई स्थिति नहीं है जिसकी वजह से श्रेष्ठ बालक को या श्रेष्ठ आत्मा को अपने गर्भ में प्रवेश दे सकें| मगर उसके लिए भी एक साधना है, एक अद्वितीय साधना है जिसको गमय साधना कहा गया है, जिसको पूर्णत्व साधना कहा गया है| और इस साधना के माध्यम से यदि मां गर्भ धारण करने से पूर्व, इस गमय साधना को पूर्णता के साथ संपन्न कर लेती है तो उसके गर्भ में एक विशिष्टता प्राप्त हो जाती है और वह विशिष्टता यह प्राप्त होती है कि दुष्ट आत्मा उसके गर्भ में प्रवेश कर ही नहीं पाती| वह उच्च कोटि के आत्माओं को ही अपने गर्भ में निमंत्रण देती है और वहां चाहे कितने ही झेलम-झेल हो, धक्के हो या एक-दुसरे को धकियाते हो मगर ज्योंही एक शुद्ध और पवित्र आत्मा पास में से गुजराती है, गर्भ खुल जाता है और उच्च कोटि की आत्मा उस गर्भ में प्रवेश कर जाती है| इस प्रकार से उस मां-बाप के हाथ में यह होता है साधना के माध्यम से अपने गर्भ में एक एक श्रेष्ठ आत्मा को ही स्थान दें और श्रेष्ठ आत्मा जब गर्भ में प्रवेश करती है तो मां के चहरे पर एक अपूर्व आभा और तेजस्विता आ जाती है| एक ललाई आ जाती है, एक अहेसास होने लग जाता है कि वास्तव में ही किसी श्रेष्ठ आत्मा ने इस गर्भ में में प्रवेश किया है, चेहरे पर तेजस्विता आ जाती है और प्रसन्नता से ह्रदय झूम उठाता है और उसके नौ महीने किस प्रकार से व्यतीत होते उसको पता ही नहीं चलता और वह जब जन्म देती है तो श्रेष्ठ आत्मा को जन्म देती है जो कि आगे चलकर के अपने क्षेत्र में अद्वितीय व्यक्तित्व बन सकता है और अपने क्षेत्र में उच्च कोटि का बनकर के मां-बाप के नाम को रोशन कर सकता है और वह मां हजारो हजारो वर्षों तक के लिए धन्य हो जाती है|
आने वाली पीढियां उसकी कृतज्ञ हो जाती है| वह मां-बाप अपने आप में एक सौभाग्य अनुभव करने लग जाते हैं| यदि इस गमय साधना को संपन्न करके इस तरह का श्रेष्ठ गर्भ प्राप्त कर सकें और यह साधना अपने आप में कोई कोई पेचीदा नहीं है, कोई कठिन नहीं है| आवश्यकता यह है कि हमें इस साधना को संपन्न करना चाहिए| आवश्यकता इस बात कि है इस तरह की साधना संपन्न कर देने की क्षमता वाला कोई गुरु आपके सामने हो| आवश्यकता यह है कि वह पति और पत्नी इस बात का दृढ़ निश्चय करे कि हमें गुरु के पास जा करके इस तरह की साधनाओं को संपन्न करना ही है और उसके बाद ही गर्भ धारण करना है और गुरु उस समय गमय साधना को संपन्न करवाता है तो यह भी बता देता है कि इस साधना को संपन्न करने के बाद किस तारीख को कितने बज कर कितने मिनिट पर समागम करने से उच्चकोटि की आत्मा का प्रवेश तुम्हारे गर्भ में हो सकता है| ठीक उसी समय तुम्हारा गर्भ खुला होना चाहिए, ठीक उसी समय उस आत्मा का प्रवेश होगा| गमय साधना का तात्पर्य यही है| और यह अपने आप में महत्वपूर्ण विचार है, चिंतन है|
वासुदेव-देवकी को जब नारद मिलें| तब उन्होनें उनसे एक ही बात कहीं थी कि मेरे गर्भ से एक उच्च कोटि का बालक जन्म ले| तो नारद ने स्पष्ट रूप से कहा कि तुम्हें गमय साधना संपन्न करनी है, चाहे तुम जेल में ही हो| इस साधना को संपन्न कर के, इस तिथि को इतने बज कर इतने मिनिट पर तुम्हें समागम करना है, गर्भ खोलना है और एक उच्च कोटि का महा मानव तुम्हारे गर्भ में जन्म ले सकेगा और जन्म लेगा तो अपने आप तुम्हें स्वप्न में स्पष्ट होगा कि कौन ले रहा है, वह स्वयं तुम्हें इस बात का संकेत दे देगा| तुम्हारे चेहरे पर एक आभा आ जायेगी, चेहरे पर मुस्कराहट आ जायेगी, तुम्हारे सारे शरीर में एक अपूर्व तेजस्विता प्रवाहित होने लगेगी और ठीक ऐसा ही हुआ|
यदि उस समय गमय साधना जीवित थी, तो गमय साधना आज भी जीवित है| आवश्यकता इस बात कि है कि हम उस गमय साधना को समझे| आवश्यकता इस बात कि है कि इस प्रकार कि साधनाओं पर विश्वास करें| आवश्यकता इस बात कि है कि ऐसा गुरु हमें मिले, जिसे इस प्रकार कि साधना ज्ञात हो| वह चाहे हरिद्वार में हो, चाहे मथुरा में हो, चाहे काशी में हो, चाहे कांची में हो और हम उस गुरु के सान्निध्य में जायें| अत्यंत विनम्रता पूर्वक अपनी इच्छा व्यक्त करें| उनसे प्रार्थना करें कि वह गमय साधना संपन्न कराये और पूर्ण गमय साधना को संपन्न होने के बाद वे उन क्षणों को स्पष्ट करें, दो या चार या छः क्षणों को उन-उन क्षणों में समागम करने से, गर्भ खोलने से तुम्हारे गर्भ में उच्च कोटि का महामानव जन्म ले सकेगा|
इसीलिए जीवन की यह महत्वपूर्ण स्थिति है, यदि हमें उच्च कोटि के बालकों को जन्म देना है, यदि इस पृथ्वी को बचाना है, यदि इसमें असत्य के ऊपर सत्य कि विजय देनी है, यदि अधर्म पर धर्म का स्थान देना है, यदि इस पृथ्वी को सुन्दर, आकर्षक और मनमोहक बनाना है, ज्यादा सुखी, ज्यादा सफल और संपन्न करना है तो यह जरूरी है और ऐसा होने से उन बालकों का जन्म हो सकेगा जो कि वास्तव में अद्वितीय है| हम कल्पना करें कि एक समय ऐसा था जब वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्री, कणाद, पुलत्स्य, गौतम सैकड़ो सैकड़ों ऋषि जन्म लिए हुए थे| अब क्या हो गया है? एक भी वशिष्ठ पैदा नहीं हो रहा है, एक भी विश्वामित्र पैदा नहीं हो रहा है, एक भी वासुदेव पैदा नहीं हो रहा है, एक भी शंकराचार्य पैदा नहीं हो रहा है, एक भी इसा-मसीह पैदा नहीं हो रहा है| इसका कारण क्या है? कारण यह है कि हम अपनी परम्पराओं से टूट गए| पूर्वजों के ज्ञान से वंचित हो गए| हमें इस बात का ज्ञान नहीं रहा कि हम किस प्रकार से विश्वामित्र, वशिष्ठ जैसे पैदा कर सकते हैं, अत्री-कणाद को जन्म दे सकते हैं, राम और कृष्ण को गर्भ में स्थान दे सकते हैं| क्योंकि हमारे पास गमय साधना का ज्ञान नहीं और ऐसे गुरु नहीं जो गमय साधना संपन्न करा सकें| उन क्षणों का, उस ज्योतिष का उनको अहेसास नहीं की वे किस क्षण विशेष में उच्च कोटि की आत्मा को गर्भ में ले सकें|
यह आज के युग में प्रत्येक स्त्री और पुरुष के लिए आवश्यक ही नहीं आनिवार्य हो गया है और यदि आप वृद्ध हो गए हो तो आपके पुत्र है, पुत्री वधु है उनके गर्भ से शिक्षा, चेतना, ज्ञान से सकते हैं कि इस प्रकार कि योग्यतम बालक को जन्म दें| ऐसा संभव हो सकता है और मेरा तीसरा प्रश्न आपके सामने रखा था कि हमने जन्म लिया, हम बड़े हुए, हमने अपने जीवन में जो भी कुछ कार्य करना था वो किया और हम मृत्यु को प्राप्त हुए| सैकड़ों हजारों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए, मगर मृत्यु के परे और मृत्यु के बाद उनका अस्तित्व, उनके प्राणों का अस्तित्व विद्यमान रहता ही हैं| जैसा की मैं बताया अंगुष्ठ रूप के आकार की आत्मा इस पितृ लोक में बराबर विचरण करती रहती है और उन लाखों करोड़ों आत्माओं में तुम्हारी एक आत्मा होती है| उन लाखों-करोड़ों के भीड़ में तुम भी एक गुमनाम सी आत्मा लिए खड़े होते हो| कोशिश करते रहते हो कि कोई गर्भ मिले और जन्म लें, मगर आप सरल है आप सीधे, आप भले हैं| आपने अपने जीवन को एक शुद्धता के साथ व्यतीत किया है, आप में छल नहीं है, कपट नहीं है, झूठ नहीं है, धक्का-मुक्की नहीं है, दुष्टता नहीं है, इसलिए आप वहां पर भी इस प्रकार की स्थिति पैदा नहीं कर सकते| धक्के नहीं मार सकते, जबरदस्ती किसी गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकते, प्रश्न उठता है क्या कोई ऐसी विधि, कोई तरकीब है, कोई स्थिति है जिसकी वजह से श्रेष्ठ गर्भ में हम जन्म ले सकें|
यहां मैंने एक श्रेष्ठ गर्भ का प्रयोग किया, श्रेष्ठ गर्भ तो बहुत कम होते है, दुष्ट गर्भ बहुत है, हजारों है, जो झूट बोलने वाले पिता है, जो कपट करने वाले पिता हैं, दुष्ट आत्माएं माताएं हैं, व्याभिचारिणी माताएं हैं, जिनका जीवन अपने आप में दुष्टता के साथ व्यतीत होता है, ऐसे गर्भ तो हजारो हैं, लाखों है मगर जो सदाचारी है, पवित्र है, दिव्या हैं, शुद्ध हैं, देवताओं का पूजन करने वाले हैं, जो आध्यात्मिक चिंतन में सतत रहने वाले हैं| ऐसे स्त्री पुरुष तो बहुत कम हैं पृथ्वी पर गिने चुने हैं| बहुत कम है जो पति-पत्नी दोनों साधनाओं में रत है, आराधनाओं में व्यतीत करते हैं| ऐसे पति-पत्नी बहुत कम है जो नित्य अपना समय भगवान् की चर्चाओं में व्यतीत करते हों|
[ यह प्रवचन जारी रहेगा.... ]
-सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानन्द परमहंस
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