शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

शिवरात्री विशेष प्रार्थना

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
अखण्ड मंडलाकार व्याप्तं येन चराचरम
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः

गुरुदेव ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव स्वरूप हैं| तथा साक्षात परब्रह्म स्वरुप हैं उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कार हो| गुरु अखण्ड और ब्रह्म स्वरुप में समस्त चराचर में व्याप्त हैं, उन्हें मेरा बारम्बार नमस्कार है |

देवो गुण त्रयातीत श्चातुर्व्यहो महेश्वर,
सकलः सकलाधारशक्ते रुत्प्त्तीकारणम |
सोSयमात्मा त्रयस्याय प्रकृतेः पुरुषस्य ,
लीलाकृतजगत्स्रुष्टिरीश्वरत्वे व्यवस्थितः ||

चतुर्व्याह के रूप में प्रकट देवाधिदेव महेश्वर तीनों गुणों से अतीत हैं, वे सब की आधार रूपा शक्ति भी उत्पत्ति के कारण है| वे ही प्रकृति और पुरुष दोनों की आत्मा हैं| लीला से खेल ही खेल में वे अनंत ब्रह्माण्ड की रचना कर देते हैं, जगन्नियंता इश्वर रूप में वे ही स्थित हैं|


शिवत्वं सदा सर्व कल्याण रूपं,
ज़रा मृत्यु रोगम क्लेशं हेरण्यं
शिवः गुरु र्न भेदोएक स्वरूपं,
तस्मै नमः गुरु पूर्ण शिवत्व रूपं

भगवान् शिव हमेशा कल्याणकारी समस्त प्राणियों के दुःख, कष्ट, बुढ़ापा, रोग आदि दूर करने वाले औधार्दानी कृपामय हैं, शास्त्रों के अनुसार गुरु और शिव में कोई भेद नहीं हैं, एक ही स्वरुप हैं, इसलिए शिवरात्री के अवसर पर मैं शिवमय गुरुदेव को भक्तिभाव से प्रणाम करता हूं।


नमस्ते नाथ भगवान शिवाय गुरुरुपिणे |
विद्यावतारसंसिद्धये स्वकृतानेकविग्रह ||१||
नारायणस्वरूपाय परमारथैकरूपिणे |
सर्वाज्ञानतमोभेदभाविने चिदाधानाय ते ||२||
स्वतन्त्राय दयाक्लुप्त्विग्रहाय शिवात्मने |
परतन्त्राय भक्तानां भव्यानां भव्यरूपिणे  ||३||
विवेकिनां विवेकाय विमढ़साय विमाशीनां   |
प्रकाशानां  प्रकाशय ज्ञानिनं ज्ञानदायिने ||४||
पुरस्तात पार्श्वर्योः पृष्ठे नाम्स्कुर्यादुपर्यधः |
सदा सच्चितास्वरूपेण विधेहि भवदासनम ||५||

हे परम पूज्य नाथ! भगवन सदगुरू रूप धारी शिव!! आपको नमस्कार!!! इस चराचर जगत में ज्ञान विद्या के उद्भव हेतु, सिद्धि हेतु आपने यह स्वरुप ग्रहण किया है, आप साक्षात नारायण स्वरुप हैं, परमार्थ, सेवा, परमार्थ ध्यान ही आपकी शुद्धतम श्री विग्रह रूप है, सम्पूर्ण अज्ञान रुपी अंधकार दोष का भेदन करने वाले, चिदघन स्वरुप आपको नमो नमः! आप परम स्वतंत्र हैं, केवल शिष्यों, साधकों, जीवों पर कृपा, करूणा करने हेतु ही शरीर धारण किये हैं, स्वतंत्र होते हुए भी प्रेमवश अपने भक्तों, शिष्यों के आधीन हैं, कल्याणों के भी कल्याण, मंगलों के भी मंगल, भव्यों के भी भाची, आपके रूप को नमस्कार, आप ही विवेकियों के विवेक, विचारको के विचार, प्रकाशकों के प्रकाश हैं, ज्ञानियों को ज्ञान देने वाले आप ही श्री स्वरुप हैं, बार-बार नमस्कार, आपको! आपका यह शिष्य हर दिशा में आपको हर ओर से प्रणाम करता है, केवल इतना ही निवेदन है, कि सदा मेरे चित्त को आसन बनाएं, और मुझे कृतार्थ करें|      

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