गुरु के द्वार पर जाना ही है ... ऐसा सोचकर पहला शिष्य कांटे चुभ रहे थे फिर भी कुटिया तक पहुंच गया और कुटिया के बाहर बैठ गया। दुसरा शिष्य कांटो से बचकर निकल आया फिर भी एकाध कांटा जो चुभ गया उसको शांति से निकाला। तीसरे शिष्य ने आकर देखा तो उसने झाडू ली। पहले बड़े बड़े कांटो को घसीटकर दूर फ़ेंक आया। फिर झाडू से कांटे बुहारकर दूर कर दिया और हाथ-मुंह धोकर कुटिया के पास आया। आचार्य कुटिया में से तीनों की गतिविधि देख रहे थे। जिसने कांटे हटाकर मार्ग साथ-सुथरा कर दिया था वह तीसरा शिष्य ज्यों ही आया, तो आचार्य ने कुटिया के द्वार खोले एवं कहा वत्स, तुम्हारा ज्ञान पूरा हो गया। तुम मेरी अंतिम परीक्षा में पास हो गए।
ज्ञान वही है जो व्यवहार में काम आए। तुम्हारा ज्ञान व्यवहारिक हो गया है। तुम उत्तीर्ण हो गए हो। तुम संसार में रहोगे फिर भी तुम्हें कांटे नहीं लगेंगे और तुम दूसरों को भी कांटे लगने नहीं दोगे वरन कांटे हटाओगे। फिर पहले एवं दुसरे शिष्य की ओर देखकर कहा - तुमको अभी कुछ दिन और आश्रम में रहना पडेगा। ज्ञान प्राप्ति का मतलब केवल पढ़कर या सुनकर उसे रटना नहीं, वरन उसे व्यवहार में लाना है। गुरु से प्राप्त ज्ञान को जो व्यवहार में लाता है, उसका ज्ञान पाना सार्थक हो जाता है।
- मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका, सितम्बर २००८,
बहुत ही व्यवाहरिक शिक्षा आपने दी........सही है कांटो से बचना और बचना यही पुर्ण ग्यान है....
जवाब देंहटाएंप्रेरक कथा।
जवाब देंहटाएंएक बार पहले पढ चुका हूँ।लेकिन दुबारा पढना भी अच्छा लगा।
I really admire what you do on your blog and I love reading this kind of inspiring stories...
जवाब देंहटाएंit gives me spiritual energy