हमें गर्व है कि हमारा सिद्धाश्रम साधक परिवार, सदगुरु कृपा से निरंतर बढ़ता जा रहा है। अब समय आ गया है कि यह परिवार संगठित रूप से महान कार्य कर सकता है और प्रत्येक साधक क्रियाशील है। साधक और शिष्य होने के साथ आपका घर-परिवार, गुरु, समाज सबके लिए कर्तव्य है और आप में क्षमता है कि आप सहज रूप से इन्हें पूरा कर सकते है।
कुछ विशेष संदेश, जिन्हें अवश्य अपनाएं
* अपने लिए और अपने परिवार के लिये तो हर कोई जीता है। मनुष्य क्या, पशु-पक्षी भी। आप अपनी उन्नति पर अवश्य ध्यान दे। लेकिन इसके साथ आप समाज के प्रति भी कर्तव्य है इस हेतु कुछ न कुछ कार्य अवश्य करें। समाज की कुछ निस्वार्थ सेवा का संकल्प अवश्य लें और करें।
* इस प्रकृति ने आपको बहुत कुछ दिया है, इसका ऋण कभी भी नहीं उतर सकता है। इसकी सेवा का एक ही उपाय है कि आप वृक्ष लगाएं। वृक्ष लगाकर भूल नहीं जाये उनका पालन-पोषण भी करें। जिस प्रकार आप अपने बच्चे का पालन-पोषण करते हैं उसी प्रकार उनका ध्यान रखते हुए उन्हें पनपाएं।
* वर्ष में एक बार परिवार के साथ भ्रमण हेतु तीर्थ स्थल अथवा किसी पर्यटन स्थल पर अवश्य जाएं।
* आप शिष्य है और गुरु आपसे इतना ही चाहते है कि वर्ष में एक बार उनसे मिलने किसी शिविर अथवा गुरुधाम, जोधपुर, दिल्ली में अवश्य आयें।
* आप स्वयं विचार करें कि आपकी आदतों में कौन-सी आदत सबसे बुरी है, बस उस आदत को छोड़ दें। शुरुआत तो करें।
* टीवी देखना, फ़िल्म देखना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इसकी अति भी उचित नहीं है। इसके साथ ही नित्य प्रति पुस्तकें और अच्छा साहित्य आदि पढ़ने की भी आदत डालें।
* अपने घर में नित्य पूजन अवश्य करें, यह पूजन केवल धुप-दीप से भी हो सकता है। पांच मिनट के लिये हे करें, लेकिन करें अवश्य।
* आपको गुरु आरती याद है यह बहुत अच्छी बात है। इसके साथ ही आपको 'राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत' 'जन-गण-मन...' और 'वन्देमातरम...' भी अवश्य याद होना चाहिए।
* मैं नहीं कहता की होटल , रेस्टोरंट इत्यादि में बाहर कभी खाना खाएं ही नहीं लेकिन इतना तो अवश्य कहूंगा कि ये पिज्जा, सैंडविच, बर्गर, कोल्ड-ड्रिंक्स, खाना उचित नहीं है। इन्हें छोड़ दें, आप छोड़ देंगे तो बच्चे भी छोड़ देंगे तथा शरीर स्वस्थ बनेगा।
* स्वस्थ जीवन के लिये आवश्यक है कि थोडा शारीरिक व्यायाम किया जाये, नित्य प्रति भ्रमण-व्यायाम, योगाभ्यास की आदत डाले तो आधी से आधिक बीमारियां तो आपके पास आयेगी ही नहीं।
* आपको क्रोध आता है यह ठीक भी हो सकता है और नहीं भी। इसका निर्णय तो क्रोध शांत होने पर आप स्वयं ही कर सकते है। लेकिन क्रोध में गालियां, अपशब्द बोलना तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। इसे छोड़ दे।
* अपनी पत्नी तथा बच्चों की तुलना कभी भी दूसरों से नहीं करें। आपके घर को आपकी पत्नी ने ही संवारा है और बच्चे आपका ही स्वरुप है, उन्हें पूरा प्यार दें।
* शरीर में निरन्तर नया रक्त बनता रहता है और यह क्रिया जीवन भर चलती रहती है। यदि आप छः महीने में एक बार रक्तादान करते है तो उससे कोई कमजोरी नहीं आयेगी, रक्त दान समाज की सबसे बड़ी सेवा है। विचार कीजिये कि आपका खून किसी की जान बचा रहा है।
* विश्वास की शक्ति पर भरोसा रखें, विश्वास और दृढ़ विश्वास आपको लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होगा।
* कोई आपकी थोडी प्रशंसा कर देता है तो आप गर्व से फूल जाते है और कोई आपकी थोडी निंदा करता है तो आप क्रोध से भर जाते है या डर जाते है। याद रखे कि आपका स्वयं का एक व्यक्तित्व है जो प्रशंसा और निंदा के अधीन नहीं है। स्वयं को जानिये।
* गुरु और देवता में आस्था का भाव जागृत होना एक महान घटना है और आस्था में चमत्कारिक शक्ति है। छोटी-मोटी बातों से अपनी आस्था का भाव मन से मत हिलायिये, आपकी आस्था हिमालय के समान दृढ़ और अविचलित होनी चाहिए।
* क्या आप कभी कोई गीत-गाते है कोई वाद्य यंत्र बजाते है अथवा गुन-गुनाते है। और कुछ नहीं तो चुपचाप कुछ सोचते हुए ताली ही बजाएं। एक बार इसे भी अपना के देखिये, आप किस प्रकार मन को शक्ति देते है और आनंद आता है।
* यह जीवन आपका है, कोई रेडिमेड कपडा अथवा कंपनी का शो-रूम नहीं है। जीवन को ख़ुद हि गढ़ना पड़ता है। जीवन जीने का ढंग आपको ही बनाना है। आप शुरुआत तो कीजिये।
ये सब आप कर सकते है, क्योंकि आप साधक है, शिष्य है और गुरु तो सदगुरुदेव निखिल है।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।