यह वाक्य अक्सर लोगों के द्वारा सुनने को मिल जाता है
वे कहते हैं -
यदि हमें अवसर मिला होता, तो आज हम यह कर लेते, आज हम वह बन जाते, आज हमारी यह स्थिति नहीं होती। तुम क्या जानो, मुझमें कितनी योग्यता है, कितनी क्षमता है, लेकिन दुर्भाग्य से हमें अवसर ही नहीं प्राप्त हो पाया।
यथार्थ में देखा जाय, तो यह कहना उचित और न्यायसंगत नहीं है। इन वाक्यों के द्वारा हम केवल अपनी अकर्मण्यता को छिपाने का प्रयास ही करते हैं, अपनी कायरता को छिपाने के लिए ढाल के रुप में ही इन शब्दों का प्रयोग करते हैं। अवसर तो सदैव से हमारे जीवन में आते ही रहते है, लेकिन हम उन्हें पहिचान नहीं पाते, उनका उपयोग नहीं कर पाते और बाद में पश्चाताप करते रहते है, अपने दोष दूसरों पर मढ़ते रहते हैं।
इसका मूल कारण यही है, कि हम अपने ऋषियों कि, अपने पूर्वजों कि गौरवशाली परम्पराओं को भूल कर अंधी भौतिकता कि दौड़ में उलझ रहे, वासनात्मक जगत में लिप्त रहे। हमने अपनी प्राचीन विद्याओं को जानने और जीवन में उतारने का प्रयत्न ही नहीं किया। फलत: हम उस पौरुष से अनाभिज्ञ रहे, जिसके द्वारा विश्वामित्र ने लक्ष्मी को अपने घर में कैद कर दिया था, एक नयी सृष्टि का निर्माण प्रारंभ कर दियां था, जिसके बल पर शंकराचार्य ने एक गरीब ब्राह्मणी के घर स्वर्ण वर्षा करा दी थी इन शब्दों को कहना हमारी लिजलिजी मानसिकता का ही प्रतीक है।
सम्पूर्ण जीवन को इस मानसिकता से मुक्त करने का एक छोटा सा प्रयास मन्त्र-तंत्र-यंत्र पत्रिका अपने पन्नों के माध्यम से सम्पन्न कर रही है, जिससे कि हम स्वशक्ति से युक्त हो सकें, हम स्वयं अपने भाग्य का निर्माण कर सकें और अपने महान ऋषियों के गौरवशाली पथ का अनुसरण कर सम्पूर्णता, श्रेष्ठता व अद्वितीयता प्राप्त कर सकें और पूरी दुनिया को दिखा सकें, कि हमारे पूर्वज कितने श्रेष्ट, कितने बडे वैज्ञानिक है और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त कितने उच्चकोटि के हैं।
आपका
नन्दकिशोर श्रीमाली
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